एक पाइप से
ज़िन्दगी झांकती है
यह पाइप नहीं
Telescope है
टिमटिम आँखें हैं इनमे
दो जिस्म अंगडाई
लेते हैं
एक पर्दा है
जाली वाला
उसके पीछे एक
बुलबुल है
वो गाती है
तो दूर तलक
आवाज़ की महक
सुनाई देती है
यह पाइप नहीं
Telescope है
जब आँखें शोर करती हैं
तब भोर भी
शोले बरसाती है
दो पंछी पंख
फैलाते हैं
उड़कर दूर जाने को
और धम्म से
नीचे गिर जाते हैं
यह पाइप नहीं
Telescope है
उसको क्या दिखता है
उसको क्या दिखना था
ये उसकी समझ
से पार है
वो तो बस चलने को
तैयार है
ये घुटन उसे
तडपाती है
पल पल उसे
डराती है
यह पाइप नहीं
Telescope है
उड़ने की कोशिश
में पंख उसके
टूट जाते हैं
जिंदगी को जिंदगी
से पहले जीने की
चाहत में
प्राण उसके
बिखर जाते हैं
यह पाइप नहीं
Telescope है
© आलोक, २००९
Chaat Vaat Khaalo!! Creative House
Monday, September 7, 2009
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