सुबह सवेरे सैर को निकला !
शीतल हवा की चाहत में
उद्यानों में घूमता
फलों फूलों को निहारता
पौधों को बाहों में भरता
आगे थे गन्ने के खेत !!
गन्ने की तरफ़ मैं क्या बढ़ता !
मानव आकृति देख मैं हुआ सचेत
अजान बाहू तेजस्वी मस्तक विशाल शरीर
डरते डरते पुछा मैंने कौन हो तुम सज्जन
कर्कश स्वर में उत्तर आया मैं हूँ डकैत !!
कनक आभूषण का मैं लुटेरा !
लूटता हूँ लोगों का चैन
मनुष्यों में मैं भय बांटता
हुक्म मानते है सब मेरा
अब ये बता कौन है तू क्या काम है तेरा !!
मैं भी हूँ एक डकैत !
लूटना मेरा बी काम है
लोगों का मैं भय लूटता
अज्ञानता को मैं मिटाता
सूर्य से प्रकाश चुराकर
अन्धकार को मैं हराता
जन-जागरण और क्रान्ति
का हूँ मैं जन्मदाता
तेरी क्या है बिसात
मैं हूँ तुझसे बड़ा डकैत !!
डाकू धरती पर गिर कर बोला !
ओ बड़े डकैत
डाकू तो अंधे होते हैं
हाथ उनके बंधे होते हैं
तुम तो हो आज़ाद पंछी
डाकू तो नष्ट करते हैं
तुम तो निर्माण करते हो
यूँ न बदलो मेरी जात
तुम नही डकैत तुम नही डकैत !!
मैं रक्त से लिखता हूँ !
कलम मेरी बन्दूक है
तुम स्याह से लिखते हो
तेरी कलम ही बन्दूक है
जो न कर पाये हमारी गोली
वह कर दिखाए तेरी बोली
यूँ न बदलो मेरी छवि
तुम कवि तुम कवि !!
© आलोक, २००९
Chaat Vaat Khaalo..!! Creative House

Good one Alok Sir.
ReplyDeleteI have tagged you for a nice meme. Please have a look on my blog..