बारिश की आवारा बूँदें
मेरी तन की ज्वाला को
बरबस यूँही हवा नहीं देती
भीगे पत्तों में
पीला पत्ता भी है
जिसकी आह किसी को
सुनाई नहीं देती
बिखरे पत्ते ज़मीन पर
एक दूसरे से यही पूछते हैं
ये बहार मेरी नही
ये बादलों का कर्कश संगीत
मौत का सन्नाटा है
शाखों से टूटे इसलिए
कि रौंदे जाएँ
क्या यही हमारी
नियति है
क्या मेरी मौत इतनी
छोटी है
दो बूंदे भी नसीब नहीं
जिसकी चाहत थी
वो भी अब करीब नहीं
ये दुनिया का दस्तूर सही नहीं
लेकिन ये पीले पत्ते
बड़े जीवट हैं
इनका बिखरना नए
जीवन की आहट है
ये तो यूँही टूटेंगे
नए पत्ते
जीवन का मज़ा लूटेंगे !!
© आलोक, २००९
Chaat Vaat Khaalo!! Creative House
Saturday, November 14, 2009
Thursday, November 5, 2009
अनकही
बात करता हूँ मैं ख़ुद से
बात होती है
मुलाकात करता हूँ मैं ख़ुद से
मुलाकात होती है
मेरी फुर्सत मेरी कोशिश मगर
दिन रात होती है
काली स्याह रातों में
सितारों के नजारों की
जब दरकार होती है
बादल की छटा छा जाती है नभ में
और बरसात होती है
ये खुशबु फूल गुलाब की
हर प्रभात होती है
छुडा कर वो मेरा दामन
कांटे भी चुभोती है
पतवार का प्यार कलि से
काँटों को नागवार गुज़रती है
यही दस्तूर है शायद
कलि तो अली के
साथ होती है
बात करता हूँ मैं ख़ुद से
बात होती है !!
© आलोक, २००९
Chaat Vaat Khaalo!! Creative House
बात होती है
मुलाकात करता हूँ मैं ख़ुद से
मुलाकात होती है
मेरी फुर्सत मेरी कोशिश मगर
दिन रात होती है
काली स्याह रातों में
सितारों के नजारों की
जब दरकार होती है
बादल की छटा छा जाती है नभ में
और बरसात होती है
ये खुशबु फूल गुलाब की
हर प्रभात होती है
छुडा कर वो मेरा दामन
कांटे भी चुभोती है
पतवार का प्यार कलि से
काँटों को नागवार गुज़रती है
यही दस्तूर है शायद
कलि तो अली के
साथ होती है
बात करता हूँ मैं ख़ुद से
बात होती है !!
© आलोक, २००९
Chaat Vaat Khaalo!! Creative House
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