बारिश की आवारा बूँदें
मेरी तन की ज्वाला को
बरबस यूँही हवा नहीं देती
भीगे पत्तों में
पीला पत्ता भी है
जिसकी आह किसी को
सुनाई नहीं देती
बिखरे पत्ते ज़मीन पर
एक दूसरे से यही पूछते हैं
ये बहार मेरी नही
ये बादलों का कर्कश संगीत
मौत का सन्नाटा है
शाखों से टूटे इसलिए
कि रौंदे जाएँ
क्या यही हमारी
नियति है
क्या मेरी मौत इतनी
छोटी है
दो बूंदे भी नसीब नहीं
जिसकी चाहत थी
वो भी अब करीब नहीं
ये दुनिया का दस्तूर सही नहीं
लेकिन ये पीले पत्ते
बड़े जीवट हैं
इनका बिखरना नए
जीवन की आहट है
ये तो यूँही टूटेंगे
नए पत्ते
जीवन का मज़ा लूटेंगे !!
© आलोक, २००९
Chaat Vaat Khaalo!! Creative House
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