Saturday, November 14, 2009

one rainy day

बारिश की आवारा बूँदें
मेरी तन की ज्वाला को
बरबस यूँही हवा नहीं देती
भीगे पत्तों में
पीला पत्ता भी है
जिसकी आह किसी को
सुनाई नहीं देती
बिखरे पत्ते ज़मीन पर
एक दूसरे से यही पूछते हैं
ये बहार मेरी नही
ये बादलों का कर्कश संगीत
मौत का सन्नाटा है
शाखों से टूटे इसलिए
कि रौंदे जाएँ
क्या यही हमारी
नियति है
क्या मेरी मौत इतनी
छोटी है
दो बूंदे भी नसीब नहीं
जिसकी चाहत थी
वो भी अब करीब नहीं
ये दुनिया का दस्तूर सही नहीं
लेकिन ये पीले पत्ते
बड़े जीवट हैं
इनका बिखरना नए
जीवन की आहट है
ये तो यूँही टूटेंगे
नए पत्ते
जीवन का मज़ा लूटेंगे !!

© आलोक, २००९
Chaat Vaat Khaalo!! Creative House

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