Sunday, October 25, 2009

Fainting Star




आगे घनघोर अँधेरा है
सूरज चाँद को खा गया
और सूरज को खा गया अन्धकार
मेरी परछाई भी
अन्धकार में हो गई गुम
मेरी आवाज़ भी है सुन्न
बादल तारे भी
अन्धकार के आगोश में
हाहाकार ! ब्रह्माण्ड है शोक में !!

© आलोक, २००९
Chaat Vaat Khaalo!! Creative House

भूल जा

अब तो अकेले में भी मुस्कुराने लगा हूँ
जाने क्या बात है सब दर्द छुपाने लगा हूँ
चाहता तो ऐसा मैं भी नहीं था
बातों में ज़माने की मगर मैं आने लगा हूँ
कहती है दुनिया तुझे भूल जाऊं
अपनी ही कही बातों को शायद भूल जाने लगा हूँ
उजालों में दिन के, ठोकर ही पायी है
चिरागों को घर के बुझाने लगा हूँ
सुनते थे मोहब्बत में खिल जाती हैं कलियाँ
काटों के ज़ख्म से मुरझाने लगा हूँ

© आलोक, २००९
Chaat Vaat Khaalo!! Creative House

जलती बुझती बात

रात सारी रात देखी
जलती बुझती बात देखी
कहती मुझसे मेरी बातें
पल में कटती लम्बी रातें
आंखों में बहती बात देखी
काजल की बहती धारा
धधकती हुई बहती धारा
सूखी सी बरसात देखी
सूनी सूनी सांझ बोली
तारों की उड़ान बोली
रंगों की मुस्कान बोली
तेरी मेरी बात देखी
जलती बुझती बात देखी

© आलोक, २००९
Chaat Vaat Khaalo!! Creative House

Saturday, October 24, 2009

लेकिन हर शाम दिल कहता है

जाने क्यों घर में विराना paata पाता हूँ
गलियों में भटकता हूँ और
आशियाना चाहता हूँ
होश वालों की भीड़ me में टकराता हूँ
और दीवानगी चाहता हूँ
बहारों में पलकर पतझड़ में
बिखर जाना चाहता हूँ
महफिलों में शायरों की ख़ुद को
अंजाना पाता हूँ
अंधी शाम की टिमटिमाती
लौ में
बुझ कर मिट जाना चाहता हूँ
तन की सीमायें तोड़कर मन के दायरों में
भटकना चाहता हूँ
लेकिन हर शाम दिल कहता है -
घर चलूँ !!

© आलोक, २००९
Chaat Vaat Khaalo!! Creative House

Sunday, October 18, 2009

दीवाली के रंग है

दीपों की होली पर
दिल जलता क्यूँ है?
सीने में भरा लोहा
मोम की तरह
पिघलता क्यूँ है?

आज, रात जागेगी
अंधेरों से भागेगी
ये चाँद सितारों को
खलता क्यूँ है?

बारूदी इत्र जब
मदहोश करती है
नशीली रात को
गुमसुम बैठा भवर
मयखाने का पता
पूछता क्यूँ है?

सन्नाटे चिल्ला कर
ख़ुद से बात करते हैं
विरानो में आहट
गूंजता क्यूँ है?

मेरे दिन रैन जलते हैं
निराशा के झींगुर
पलते हैं
अंधी आँखे
ढूंढता क्यूँ है?

बिना तेल दीपक
बिना लौ भी
जलता है
रौशनी तो नही
अंधेरों में फ़िर भी
दिखता है
सूरज तू
ढलता क्यूँ है?

ऊंचाइयों के आयाम
छूकर
ओंधे मुहँ गिरता है
गिरने के लिए
फ़िर
संभालता क्यूँ है?

वक्त के चक्रवात से
फूटेंगी ग़म की
धाराएँ
बादल सूखे
आंखों में
बरसात क्यूँ है?

हँसता है कोई
रिश्तों के जनाजे पर
खुश था कोई
मुझे दफन करके
लाश पर मेरी
मातम क्यूँ है?

© आलोक, २००९
Chaat Vaat Khaalo!! Creative House