जाने क्यों घर में विराना paata पाता हूँ
गलियों में भटकता हूँ और
आशियाना चाहता हूँ
होश वालों की भीड़ me में टकराता हूँ
और दीवानगी चाहता हूँ
बहारों में पलकर पतझड़ में
बिखर जाना चाहता हूँ
महफिलों में शायरों की ख़ुद को
अंजाना पाता हूँ
अंधी शाम की टिमटिमाती
लौ में
बुझ कर मिट जाना चाहता हूँ
तन की सीमायें तोड़कर मन के दायरों में
भटकना चाहता हूँ
लेकिन हर शाम दिल कहता है -
घर चलूँ !!
© आलोक, २००९
Chaat Vaat Khaalo!! Creative House
गलियों में भटकता हूँ और
आशियाना चाहता हूँ
होश वालों की भीड़ me में टकराता हूँ
और दीवानगी चाहता हूँ
बहारों में पलकर पतझड़ में
बिखर जाना चाहता हूँ
महफिलों में शायरों की ख़ुद को
अंजाना पाता हूँ
अंधी शाम की टिमटिमाती
लौ में
बुझ कर मिट जाना चाहता हूँ
तन की सीमायें तोड़कर मन के दायरों में
भटकना चाहता हूँ
लेकिन हर शाम दिल कहता है -
घर चलूँ !!
© आलोक, २००९
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