अब तो अकेले में भी मुस्कुराने लगा हूँ
जाने क्या बात है सब दर्द छुपाने लगा हूँ
चाहता तो ऐसा मैं भी नहीं था
बातों में ज़माने की मगर मैं आने लगा हूँ
कहती है दुनिया तुझे भूल जाऊं
अपनी ही कही बातों को शायद भूल जाने लगा हूँ
उजालों में दिन के, ठोकर ही पायी है
चिरागों को घर के बुझाने लगा हूँ
सुनते थे मोहब्बत में खिल जाती हैं कलियाँ
काटों के ज़ख्म से मुरझाने लगा हूँ
© आलोक, २००९
Chaat Vaat Khaalo!! Creative House

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