Sunday, October 25, 2009

भूल जा

अब तो अकेले में भी मुस्कुराने लगा हूँ
जाने क्या बात है सब दर्द छुपाने लगा हूँ
चाहता तो ऐसा मैं भी नहीं था
बातों में ज़माने की मगर मैं आने लगा हूँ
कहती है दुनिया तुझे भूल जाऊं
अपनी ही कही बातों को शायद भूल जाने लगा हूँ
उजालों में दिन के, ठोकर ही पायी है
चिरागों को घर के बुझाने लगा हूँ
सुनते थे मोहब्बत में खिल जाती हैं कलियाँ
काटों के ज़ख्म से मुरझाने लगा हूँ

© आलोक, २००९
Chaat Vaat Khaalo!! Creative House

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