Saturday, February 28, 2009

मैं फ़िर ब्रह्मचारी

काश कोई अपने लिए भी
करवा चौथ का व्रत रखता
रात को चाँद देख कर ही
अन्न जल ग्रहण करता
जब चाँद के साथ देखे जाते
तब हमें भी देवता होने का एहसास होता
हाई री किस्मत !
रोज़ मन्दिर जाके घंटे बजता हूँ
नारियल की रिश्वत देके
मन्नत मनाता हूँ
की हमारे लिए भी "शुशील" कन्या
प्रकट करो भगवन
जिसे देख कर खिल उठे
मेरा ये तन मन
अपनी demand है की
लड़की कुछ ऐसी हो
हो भारत की पर दिखने में
पश्चिम की परियों जैसी हो
आँखें हो जैसे A.K. छप्पन
देखे जिस तरफ़
लाशें गिरा दे दनादन
होठों में हो ऐसा शबाब
के पड़ जाए फीका
जन्नत - ऐ - आब
विष बुझे तीरों सी हो उसकी बोली
फूल भी मारे तो लग जाए गोली
घुंगराले बाल हो करिश्माई इस कदर
के फीका पड़े सन्नी भाई का
पाकिस्तानी "ग़दर"
चाल की क्या बात हो
मंजिल ख़ुद भूल जाए अपनी डगर
कर रहे थे हम अपनी इस Fantasy पर गुमान
तभी राह में दिखलाई दिए प्रभु हनुमान !
हमने किया दंडवत प्रणाम
खुश होकर प्रभु बोले
पुत्र ! मांग लो वरदान !
बस फिर क्या था
हमने अपनी Dream कुड़ी का किया बखान
सुनते ही प्रभु के पसीने छूट पड़े
बोले अपनी Problem भी तो यही है
ढूँढता हूँ जिस Dream कुड़ी को
मिलती कहीं नही है
इसी सिलसिले में थी
इन्द्र से Appointment
उन्होंने खोला है Match-making का Department
अरे तुम भी जल्दी से
अपनी अर्जी भेज दो
waiting list लम्बी है
lucky draw से number आयेगा
एक original बाकि फर्जी भेज दो
हमने suggest किया हनुमान को
इस से पहले के हम
अपनी अर्जी send करें
आप तो राम के करीबी हैं
तो फ़िर क्यों न वे हम दोनों का
नाम recommend करें
तो वो कहते हैं पैरवी तो न चलेगी
अव्वल तो इन्द्र के हिदायत हैं कड़े
वो क्या recommend करे
जो line में पहले से हो खड़े
जबसे सीता मैय्या गई हैं
उनकी तो हालत
अपनी से भी है बुरे
यह सब सुन कर हमे विविध भरती का
भूला - बिसरा गीत याद आया -
दुनिया में कितना ग़म है
मेरा ग़म कितना कम है
जब राम और हनुमान की नही सुनता
तो मेरे नारियल में क्या दम है
हमने भी मन ठाना है कि
राम और हनुमान का काम करवा के रहेंगे
हमे तलाश है जिनकी
वैसी शुशील कुड़ी
पा के रहेंगे !!!
हमने WORLD FORCED कुंवारा
Association का गठन करवाया
और Agenda का पहला item
लड़की रखवाया
और फ़िर दल - बल सहित
ब्रह्म लोक पर मोर्चा लगाया
ब्रम्हा जी के साथ 1st Round Table Confrence
हुई शुरू
पर वो हम सब के निकले गुरु
बड़े जोश से ख़ुद सृष्टि रचते रह गए
अपने लिए न एक रची
अब बूढे हो गए
अरे ये क्या ! अपनी समस्या तो
जस की तस् रही
जो पहले marital status थी
है अब भी वही
ब्रम्हा जी ने हमें ढानढस दिलाया
कुछ सोचा
फिर एक शातिर दाव लगाया
हम सब मिल कर बम भोले के पास चलेंगे
वे सबकी सुनते हैं
वे ही हमारे कष्ट हरेंगे
मोदी की तरह हमने भी रथ यात्रा निकाली
दुनिया भर के अनचाहे कुंवारों की दुआ ली
मन ही मन हमने सोचा
चलो काम न बना तो
नेता ही बन जायेंगे
पत्नी भले ही न मिले
ये कम है क्या
कभी न कभी
राष्ट्र के पति तो कहलायेंगे
कैलाश पर Shiv Secretary नंदी ने रोका
और आने का कारन पूछा
हमने कहा relax! dont get so carried!!
first of all tell me are you married??
शिव पारवती के संग आबाद हुए
उनकी सेवा में नंदी तुम्हारे
न जाने कितने बरस बरबाद हुए
आओ शिवगन join करो हमारी टोली
और Forced कुंवारों की जय हो
लगाओ बोली
ऐसा एक लगा नारा तो
कैलाश पर भूकंप हुआ
अरे नंदी वाला दाव तो साबित
अपने लिए Trump हुआ
शिव पारवती अचंभित हुए और पुछा
ये क्या हल्ला बोल है
इन बागियों में नंदी तुम्हारा क्या Role है
नंदी बोले दर्शानाभिलाशियों की समस्या
बड़ी गंभीर है
समाधान हेतु Line में हनुमान, ब्रम्हा
कविराज, संग में रघुबीर हैं
The are Forced Bachelors
यह Universal Fact है
शिवगन भी संग हैं चूँकि हमारा इन से
bilateral pact है
अब जल्दी कीजिये समस्या पर विचार
वरना टूट जायेगी भक्त - भगवान
के बीच की दीवार
शिव जी घबरा के बोले
ये मेरे बस की बात नहीं
मुझपे न आघात करो
सब किया धरा है विष्णु का
उनसे ही दो दो हाथ करो
चलो में भी तुम्हारे साथ चलूँगा
मुझसे जो भी बन पड़ेगा वो करूँगा
दल बल ने किया
क्षीर सागर कि ओर प्रस्थान
हो न हो अबके होगा
अपनी समस्या का समाधान
ये सोच कर मन हो रहा था बाग़ बाग़
के प्रभुधाम कि पहरेदारी में
मिले शेषनाग
हम बोले कि शिव जी का सन्देश है
प्रभु ज़रा जल्दी करना
मिलने का कारण
विशेष है
प्रभु ने सन्देश पर तुंरत किया विचार
और श्रीघ्र ही खुल गए
बैकुंठ के द्वार
प्रभु ने जब आने का प्रयोजन जाना
स्तिथि बड़ी विकट है, ये भी माना
लक्ष्मी जी ने पूछा हमसे
कहो कवि तुम्हारी पसंद कैसी है
सूझा न कुछ तो कह डाला
ज्यादा कुछ नहीं
बस आप ही के जैसी है
इस पर तो विष्णु हमसे रुष्ट हुए
समझा था तुमको कवि
पर तुम तो सबसे दुष्ट हुए
जा तुझको मैं श्राप देता हूँ
विवाह योग ही तेरा मैं छीन लेता हूँ
कुंवारा ही जीवन भर घूमता फिरेगा
बहुत नेतागिरी करता है
सबके दंड तू ही भरेगा
वीर हनुमान, राम और ब्रम्हा
के प्राण तो मानो सटक गए
इस मानव कि बातों में आकर प्रभु
हम तो अपने लक्ष्य से भटक गए
सब के सब तो हमारा दामन झटक गए
गिरे थे आसमान से
अब खजूर में लटक गए
लटके लटके हमने
खजूर का भोग लगाया
जब होश में आये तो
खुद को बिस्तर पर पाया
मैं फिर भटक गया था
मेरी मति गयी थी मारी
अंगूर अक्सर खट्टे होते हैं
मुझे कुछ नहीं चाहिए
मैं फिर से ब्रह्मचारी !!!!
मैं फिर से ब्रह्मचारी !!!!

© आलोक, २००९

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DESPERATION

दरिया मे दाने मोती के
परियों को पाने के
मेरे इरादे
सूखे शज़र पर
हरियाये पत्ते
झरने से झरझर
घटता पानी
मेरी जवानी की
घटती हुई यादें
अधूरे सपनो के
खोये हुए साये
मेरे तन से आगे
मेरी परछाई
हम सफर करते हैं
माफ़ करना
पूरे न हो सके हमसे
जो किए थे वादे !!!

© आलोक, २००९
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Friday, February 27, 2009

मैं "ऐक" हूँ

संसार ऐक मेला है
कहीं फूल कहीं ढेला है
कहीं नाच गाने
कहीं कठपुतली का खेला है
सभी "उसके" खेल - खिल्लोने हैं
खिल्लोने अनेक हैं
मैं "ऐक" हूँ !

मेले में भीड़ है
कोई राम है कोई कबीर है
जात - पात की खिंची लकीर है
कहीं भव्य महल
कहीं कुटीर हैं
वर्ग अनेक हैं
मैं "ऐक" हूँ !!

यहाँ इस भीड़ में
युवा हैं वृद्ध हैं
दीन हैं समृद्ध हैं
सबका लक्ष्य निश्चित है
पाने को क्यों
चिंतित है
सबका रथ तो ऐक है
पहिये अनेक हैं
मैं "ऐक" हूँ !!!

लोग यहाँ धर्मांध हैं
अगल - बगल शोक और आनंद हैं
आँख खुली है
किंतु बंद है
विद्या व ज्ञानका फैलाव है
फिर भी मति मंद है
धर्माधिकारी का साम्राज्य है
धर्मों द्वारा बँटा ये समाज है
भगवन अनेक हैं
में "ऐक" हूँ !!!!




© आलोक, २००९


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Saturday, February 21, 2009

धुआँ

धुऐं की तरह
भटकता रहा मैं
कुछ दूर जाकर ओझल हुआ
क्या मंज़िल मिल गयी मुझे
या कारवां गुज़र गया !

ये कैसा सफ़र था
ये कैसी थी यादें
कदमों के निशान ना थे
सिसकियों के कान्टे थे
और मुरझाई हुई थी यादें
कण्ठ से निकल कर
हवा हो गई
मेरी चीख भी शायद
धुआँ हो गई !!

तमन्नाओं के अंधेरे
दिन में मोम हो जाते हैं
अंधेरों का साया पड़ते ही
अरमान जाग जाते हैं
फ़िर रात जल कर
सुबह जवान हो गई
मोम पिघलकर राख
और रोशनी धुआँ हो गयी !!!






© आलोक, २००९


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द्वारपाल द्वार खोलो



विमूढ् हो, त्यज कर
'आलोक' रथ पर पसर
मृत्युलोक मुझे झमा कर
मैं चला इन्द्र के घर

मित्र आये, सहभागी आये
पहुंचे दर्शनाभिलाशी अपार
देकर बिदायी, कर अन्तिम प्रणाम
सब कर गये प्रस्थान
मैं भी चल पड़ा उस धाम
अंतहीन राह, पहुँचा मगर

द्वारपाल द्वार खोलो !

अरे ! क्या तू बधिर
हुआ मैं अधीर
हे वीर हे सुधीर
सुन मेरी पीर
में मानव हूँ
पृथ्वी वासी हूँ

संदेश भिजवाया
ऐरावत आया
मैंने किया नमन
ऐरावत बोला हे सज्जन
क्यों आया है,
तेरा क्या है प्रयोजन

कुछ खीज खीज कर
दांतों को पीस कर
मैंने कहा
हे इन्द्र
द्वार तुम्हारा बंद है
तिस ज्ञान भी मंद है

धरा पर अशांति अधर्म का राज है
क्षुब्ध पीड़ित शोषित धरा आज है
दुःख अशांति विनाश को मैं त्याग
हो कर बैराग
बड़ी अभिलाषा ले कर
मैं आया तेरे घर
अतिथि देवो भव
तू कर मेरा सत्कार

मेघ गरजा और गुर्राया
हाए रे मानव
क्या तेरा अधिकार ?
तुझ पे है धिक्कार !

तू ने ना दुखों को झेला है
ना ही मुसीबतों से खेला है
जिस दिन तू करेगा सागर पार
तिस दिन रश्मिरथ पर होना सवार
तब खुलेगा येह किवाड

हे बैरागी, मैं दूँगा तुम्हे आसन
पहले दो ये वचन
तू कर दे अब प्रस्थान
बन समय से बलवान
मृत्यु मै तु जीवन् को खोजता है
ये महामूर्ख्ता है !!
ग्रहन कर देवज्ञान
मैने किया धरा पर प्रस्थान

द्वारपाल द्वार खोलो !!!!



© आलोक, २००९
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Saturday, February 14, 2009

जो मैंने नहीं लिखे



मेरे दिल के मकान के
खाली दराजों मैं अब भी
तुम्हें वो ख़त मिल जायेंगे
जो मैंने नहीं लिखे !!



मेरी आंखों की गेहरायिओं में उतरोगी
तो तुम्हें दिखाई देंगे
बहुत से शब्द डूबते हुए
जो मैंने नहीं लिखे !!



कभी शामिल हो जाओ मेरी ज़िन्दगी में
तो पढ़ सकोगी
कई ना-उम्मीद कहानियाँ
जो मैंने नहीं लिखे !!



कभी जब मेरा हाथ थामोगी तुम
तो महसूस करना
अधूरी सी लकीरें
जो मैंने नहीं लिखे !!



कभी अपने दिल में तुम
जब झांकोगी तो तुम्हें दिखेंगी
जलती हूई किताबें
जो मैंने नहीं लिखे !!



मेरे ये नज़्म तुम्हारे लिए ही हैं
तुम देदो इन में
कोई ऐसा मोड़
जो मैंने नहीं लिखे !!




© आलोक, २००९
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मैं हार मान लेता हूँ !!

मैं हार मान लेता हूँ
जब सूरज अस्त हो जाता है
फूल सभी मुरझा जाते हैं
जब समय चलने लगता है
और मैं ठहर सा जाता हूँ

मैं हार मान लेता हूँ
जब आशा की चिकनाई पर
पाँव फिसलने लगता है
सब आगे बढ़ जाते हैं
और मैं पीछे रह जाता हूँ

मैं हार मान लेता हूँ
जब ठोकर राह में लग जाए
कोई हाथ मुझे न थामे
गिरता हूँ आप संभालता हूँ
और थक कर बैठ जाता हूँ

मैं हार मान लेता हूँ
जब मेरी हार पर हसने वाले
रोज़ मुझे गिराते हैं
मैं कुछ कह नहीं पाता हूँ
और सब कुछ सहता जाता हूँ

मैं हार मान लेता हूँ !!!
मैं हार मान लेता हूँ !!!


© आलोक, २००९

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यह कवि निराश है


सुनो ! बात एक मैं कहता हूँ
बात है बहुत ज़रूरी
यह कवि निराश है
अब तुम करो मेरी कविता पूरी !!!


ठहरो ! शब्द तुम
न मुझसे रूठो
समझो कुछ
मेरी मजबूरी
यह कवि निराश है
अब तुम करो मेरी कविता पूरी !!!


पंथी ! प्यासे तुम
मत जाओ
पनघट की है
थोडी दूरी
यह कवि निराश है
अब तुम करो मेरी कविता पूरी !!!


जागो ! पलकों पर जलते
सपने दिन के
रात आती
घटता है सूरज
ख़त्म होगी नूरी
यह कवि निराश है
अब तुम करो मेरी कविता पूरी !!!


देखो ! खुली किताब का
पलटा हुआ पन्ना
और धुंधली स्याही
अन्तिम पन्ना है कस्तूरी
यह कवि निराश है
अब तुम करो मेरी कविता पूरी !!!


© आलोक, २००९

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