Saturday, February 14, 2009

यह कवि निराश है


सुनो ! बात एक मैं कहता हूँ
बात है बहुत ज़रूरी
यह कवि निराश है
अब तुम करो मेरी कविता पूरी !!!


ठहरो ! शब्द तुम
न मुझसे रूठो
समझो कुछ
मेरी मजबूरी
यह कवि निराश है
अब तुम करो मेरी कविता पूरी !!!


पंथी ! प्यासे तुम
मत जाओ
पनघट की है
थोडी दूरी
यह कवि निराश है
अब तुम करो मेरी कविता पूरी !!!


जागो ! पलकों पर जलते
सपने दिन के
रात आती
घटता है सूरज
ख़त्म होगी नूरी
यह कवि निराश है
अब तुम करो मेरी कविता पूरी !!!


देखो ! खुली किताब का
पलटा हुआ पन्ना
और धुंधली स्याही
अन्तिम पन्ना है कस्तूरी
यह कवि निराश है
अब तुम करो मेरी कविता पूरी !!!


© आलोक, २००९

Chaat Vaat Khaalo..!! Creative House

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