Saturday, March 14, 2009

मुझे वोट दीजिये

मुझे वोट दीजिये
मेरा चुनाव चिह्न है गधा
मेरी मानिए मैं आपको गधा नहीं बनाऊंगा
मैं ख़ुद ही गधा हूँ (कृपया गधे मुझे माफ़ करें)
आपको क्या बनाऊंगा
गधा बहुत ही काम का होता है
ज़माने भर का बोझ ढोता है
हर दुःख दर्द सहता है
बस यही कहता है
मुझे वोट दीजिये !!
इस देश को गधा ही चाहिए
कितना भी वजन डालो
ना झुकता है ना गिरता है
ये भले ही रुक रुक के चलता है
मगर मंजिल पर ज़रूर पहुँचता है
इस लिए यही कहता है
मुझे वोट दीजिये !!

ये सीधा सरल और सच्चा है
पर ये न समझना की कच्चा है
इरादे का बड़ा ही पक्का है
काम के वक्त ये घास नहीं खाता है
खाते वक्त ये काम नही आता है
फिर भी यही कहता है
मुझे वोट दीजिये !!

देश की यही आवाज़ है
वाह ! क्या सुर है क्या साज़ है
आवाज़ में इसके एक राज है
हम अनेक हैं किंतु हमारी आवाज़ एक है
शांत रहता है
सिर्फ़ यही कहता है
मुझे वोट दीजिये !!

पड़ोसियों !!!
मत समझना ये शांत जाति है
केवल घास नहीं खाती है
अरे ! छेड़ कर तो देखो
ये क्या रंग दिखाती है
ऐसी दुलत्ती मारती है
के नानी याद आती है
बहुत कुछ कर सकती है
लेकिन यही कहती है
मुझे वोट दीजिये !!!!!

© आलोक, २००९ Chaat Vaat Khaalo॥!! Creative House


युवाबल !!



ऐ युवाबल !
कदम कदम बढ़ा
संभल संभल
आज तुम्हारा है
तुम्हारा होगा कल
राह अलग अलग
एक हो मंजिल
एकजुट एक दल
बढ़ता चल
राहें काटों से पटी
बिना रथ पैदल
बिना थके बिना रुके
जैसे चट्टान अविरल
बढ़ता चल
तुम आस की किरण
सूर्य अटल
निश्चय कर
होंगे सफल
ऐ युवाबल !!

© आलोक, २००९
Chaat Vaat Khaalo..!! Creative House

Thursday, March 12, 2009

सोचता हूँ एक कविता लिखूं

कुछ करते करते में रुक गया
सोचता हूँ एक कविता लिखूं !

क्या लिखूं ये सूझता नहीं है, फ़िर भी
सोचता हूँ एक कविता लिखूं !

जानता हूँ हँसते हैं लोग मुझपर
मेरे इस दकियानूसी शौक़ पर, फ़िर भी
सोचता हूँ एक कविता लिखूं !

किसी के विचार, शब्दों की पोटली में
अच्छे नहीं लगते हैं, फ़िर भी
सोचता हूँ एक कविता लिखूं !

में जानता हूँ प्रिये! मेरे शौक़ से तुम भी
उलझनों में रहती हो, फ़िर भी
सोचता हूँ एक कविता लिखूं !

में पुराना हूँ, तुम समय के सारथी
में अपनी बातें ही दोहराता हूँ, फ़िर भी
सोचता हूँ एक कविता लिखूं !!

© आलोक, २००९
Chaat Vaat Khaalo..!! Creative House

Tuesday, March 10, 2009

इन पन्नों को पलट दो

वो किताब देख रहा हूँ
उनमे कुछ शब्द
नहीं दीख पड़ते हैं
कोई इन पन्नों को
पलट दो

मिटा क्यों नहीं देते हो
ये तहरीरें ये लकीरें
ये तस्वीरें
जो तकलीफ देती हैं

कशमकश
जो जीने नहीं देती
ख्वाहिशें
जो मरने नहीं देती

ये तस्वीरें
जो तकलीफ देती हैं
मिटा क्यों नही देते हो

ये तन्हाइयाँ
ये घुटन
ये कुंठित से
सुखन
कोई इन पन्नों को
पलट दो !!!!

© आलोक, २००९
Chaat Vaat Khaalo..!! Creative House

Sunday, March 8, 2009

दो राहें



जब भी मैं निकलता हूँ
कर के पूरी तैय्यारी
अपनी मंजिल की और अग्रसर
दो कदम चल कर
मुझे क्यों मिलती हैं सामने दो राहें
मुझ पर फैलाती अपनी बाहें !!
त्याग ओर विलास
दो अंतहीन राहें

एक कांटो का पथ है
दूसरा पतन का रथ है
भरमाये काँटों का दर्शन
खींचे रथ का आकर्षण
त्याग पथ पर क्यों जाऊं मैं
क्या पाया है ज़िन्दगी से मैंने
जो सब कुछ व्यर्थ लुटाऊ मैं
विलास पथ पर जा कर
क्यों न जीवन सुंदर बनाऊं मैं
पथ पर मिले साधू महान
मैंने किया अपनी व्यथा का बखान
साधू ने मुझको समझाया
करना है जीवन सफल
तो काँटों के पथ पर चल
पुष्प से पहले है काँटों का स्थान !!
पर मैं तो चाहूँ पुष्प काटों से पहले
काटों के पथ पर जाऊं न जाऊं
ख़ुद को फ़िर से दोराहे पर पाऊं
मुझे क्यों मिलती है सामने दो राहें
मुझ पर फैलाती अपनी बाहें !!!!

© आलोक, २००९
Chaat Vaat Khaalo..!! Creative House

Wednesday, March 4, 2009

तुम ही पुकारो

अकेला हूँ !
दो बोल सुनने को तरसता हूँ
दीवारों ! तुम ही पुकारो !!

पराजित हूँ !
जीतने को तड़पता हूँ
सफलता ! तुम ही पुकारो !!

विकृत हूँ !
नव - सरचना मांगता हूँ
प्रकृति ! तुम ही पुकारो !!

भटकता हूँ !
आश्रय चाहता हूँ
भूमि ! तुम ही पुकारो !!

रोता हूँ !
मुस्कुराने को इच्छित हूँ
सुखराम ! तुम ही पुकारो !!

सुप्त हूँ !
जागना चाहता हूँ
अन्तर मन ! तुम ही पुकारो !!

मृत हूँ !
जीवन चाहता हूँ
अमृत ! तुम ही पुकारो !!

तिरस्कृत हूँ !
शरणागत हूँ
राम ! तुम ही पुकारो !!


© आलोक, २००९
Chaat Vaat Khaalo..!! Creative House