Wednesday, March 4, 2009

तुम ही पुकारो

अकेला हूँ !
दो बोल सुनने को तरसता हूँ
दीवारों ! तुम ही पुकारो !!

पराजित हूँ !
जीतने को तड़पता हूँ
सफलता ! तुम ही पुकारो !!

विकृत हूँ !
नव - सरचना मांगता हूँ
प्रकृति ! तुम ही पुकारो !!

भटकता हूँ !
आश्रय चाहता हूँ
भूमि ! तुम ही पुकारो !!

रोता हूँ !
मुस्कुराने को इच्छित हूँ
सुखराम ! तुम ही पुकारो !!

सुप्त हूँ !
जागना चाहता हूँ
अन्तर मन ! तुम ही पुकारो !!

मृत हूँ !
जीवन चाहता हूँ
अमृत ! तुम ही पुकारो !!

तिरस्कृत हूँ !
शरणागत हूँ
राम ! तुम ही पुकारो !!


© आलोक, २००९
Chaat Vaat Khaalo..!! Creative House

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