Wednesday, July 1, 2009

मुजरिम

अब की बार जब लौटा तो
सब कुछ बदला बदला था
सावन में आकाश सुर्ख था
और खेत बंजर थे
चौपाल पर गिरते जलस्तर
की बहस छिडी थी
तो कोई क़र्ज़ माफ़ी
पर अड़ा था
वो देखो ! 'सत्यकाम' आ रहा है
चौपाल आने वाले बजट को ताल
गालियों का बाज़ार गर्म करने लगा
व 'नागो' का बेटा !
वही नागिंदर
वह चोरी की सज़ा काट कर आया है
नही नही ! वह तो नक्सली हो गया है
वह अब क्या लेने आया है ?
उस बूढे को क्या खूब दिन दिखलाये हैं !
मिश्रा जी की चौखट से गुजरा
तो ठिठका 'डौली' की उन यादों पर
बीच मंडप से भागा था
रिश्तों से बगावत कर
समाज बौखला उठा था
इस खिलाफत पर
छोटे भाई ने थामा था
हाथ 'डौली' का उस दिन
उस दिन से बन गया
सत्यकाम
समाज का मुजरिम !!!!

© आलोक, २००९
Chaat Vaat Khaalo!! Creative House

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