मेरे प्यासे नैना
कबसे बरस रहे हैं
तुझको पाने को
तरस रहे हैं
जंगल जंगल
पर्वत पर्वत
ढूँढा तुझको
यहाँ भी वहां भी
तू कहाँ है !
आसमा पीछे छूट गया
क्यूँ तू मुझसे रूठ गया
नदियाँ सूखी
पत्थर टूटे
विश्वास मेरा स्थिर है
कहीं भी कभी भी
तू कहाँ है !
आवाज़ मेरी रुआंसा है
साँसों में तपिश
जरा सी है
हिमालय पुकारे
ये सागर पुकारे
जमीं भी आस्मा भी
तू कहाँ है !
आँखों से जब तू
ओझल हुई है
तन को मेरे प्राण
बोझल हुए हैं
मेरे दिन रात
बस तुझे चाहे
धुंआ चीर के
मेरे पास आये
चाहत में बीते
फिजा भी खिज़ा भी
तू कहाँ है !!
© आलोक, २००९
Chaat Vaat Khaalo!! Creative House

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