Saturday, May 22, 2010

और यूँ सूर्य परास्त हो गया

एकदा ! प्रातः उठते ही सूर्य नज़र आया
मुझे देख कर हंसा और इठलाया
ठन्डे स्वर में बुदबुदाया
तेरे नयनो को जो आवश्यक है
वो मेरा ही प्रकाश है
मैं नहीं तो भू पर सर्वदा अवकाश है
खिन्न हो कर मैं भी बडबडाया
अरे क्रित्घन ! यही तो मेरा उपकार है
नेत्र न खोलूं तो तेरा तेज़ भी बेकार है
उत्तर सुन सूर्य तिलमिलाया
दीप्तिमान हो मुझ पर गुर्राया
मेरे ही तेज़ से सभी कर्म अनुष्ठान होते हैं
हम भी कहाँ कम थे पूछ ही डाला
रात को आप कहाँ विराजमान होते हैं
सूर्य की लालिमा भड़क उठी
तेज़ का ना मेरे अपमान कर
छूते ही तू भस्म हो जायेगा
मंद मंद मैं मुस्कुराया
तू क्या मुझे भस्म कर पायेगा
क्षण भर में मोम की तरह पिघल जायेगा
तेरा समय तो पूरा हो गया है
अब तो तू अस्त हो जायेगा
अवाक सूर्य पस्त हो गया
पर्वतों के पीछे अस्त हो गया
घमंड उसका नष्ट हो गया
और यूँ सूर्य परास्त हो गया

© आलोक, २००९
Chaat Vaat Khaalo!! Creative House

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