Saturday, May 22, 2010

आखिरी बूँद

बारिश की बूंदे
मेरे सूखे मन को तर दे
डूबे हुए तन को
आशाओं से भर दे
ये समंदर फिर प्यासा है
भीषण बड़ा अकाल हुआ है
कुआं पोखर तालाब
नदी स्रोत्र सब हुए बर्बाद
रगों का पानी सूख रहा है
आंसू बनके
आँखों से फूट रहा है
फसलों को जलते देखा मैंने
आँखों के पानी को
होठों को छुकर
प्यास बुझाते देखा मैंने
खूँ से पानी अलग हुआ है
डूबने का अब समय हुआ है
नाउम्मीदी का बाँध भर चुका है
दे दो मुझको
उम्मीद की आखिरी बूँदें
मेरे सूने मन को तर दे !!

© आलोक, २००९
Chaat Vaat Khaalo!! Creative House

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