बारिश की बूंदे
मेरे सूखे मन को तर दे
डूबे हुए तन को
आशाओं से भर दे
ये समंदर फिर प्यासा है
भीषण बड़ा अकाल हुआ है
कुआं पोखर तालाब
नदी स्रोत्र सब हुए बर्बाद
रगों का पानी सूख रहा है
आंसू बनके
आँखों से फूट रहा है
फसलों को जलते देखा मैंने
आँखों के पानी को
होठों को छुकर
प्यास बुझाते देखा मैंने
खूँ से पानी अलग हुआ है
डूबने का अब समय हुआ है
नाउम्मीदी का बाँध भर चुका है
दे दो मुझको
उम्मीद की आखिरी बूँदें
मेरे सूने मन को तर दे !!
© आलोक, २००९
Chaat Vaat Khaalo!! Creative House

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