मैं हार मान लेता हूँ
जब सूरज अस्त हो जाता है
फूल सभी मुरझा जाते हैं
जब समय चलने लगता है
और मैं ठहर सा जाता हूँ
मैं हार मान लेता हूँ
जब आशा की चिकनाई पर
पाँव फिसलने लगता है
सब आगे बढ़ जाते हैं
और मैं पीछे रह जाता हूँ
मैं हार मान लेता हूँ
जब ठोकर राह में लग जाए
कोई हाथ मुझे न थामे
गिरता हूँ आप संभालता हूँ
और थक कर बैठ जाता हूँ
मैं हार मान लेता हूँ
जब मेरी हार पर हसने वाले
रोज़ मुझे गिराते हैं
मैं कुछ कह नहीं पाता हूँ
और सब कुछ सहता जाता हूँ
मैं हार मान लेता हूँ !!!
मैं हार मान लेता हूँ !!!
© आलोक, २००९
Chaat Vaat Khaalo..!! Creative House

Alok Sahab......
ReplyDeleteWonderful Poetry....
जब आशा की चिकनाई पर
पाँव फिसलने लगता है
Lekin In Pankitiyon ka to Main Bas Kaayal hi Ho Gaya....
hum bhi aapke kaayal hain janaab.. aap yun hi hausla afzaayi karte rahiye.. shukiya
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