Sunday, March 13, 2011

मीरा

अँधेरे के जुगनू कहते हैं
आ लपक ले मुझे
दिन में रोशन मायूसी कहती है
रात तमन्नाओ के
ख़त भेजे थे
क्या वो तुम्हे मिले थे ?
डाकिये की साइकिल की घंटी
अब सुनाई नहीं देती
मेरी वेदनायों को कोई
ख़त नही लिखता
पनघट पर हंसती हुई यादें
पानी की डब डब से
मिट जाती है ........... क्यों ?
तपती धरती पर ओस की
पहली बूंदे
जैसे भाप बन कर उड़ जाती हैं
तेरी याद वैसी है
माथे पर पसीने की
बूँद बन कर पनघट पर
रुलाती है
कहती है मुझसे
मेरी कुछ पुरानी बातें
चुप कर और यादों में खो जा
चिट्ठी अभी आती है .....

मंदिर की टूटी सीढ़ियों से
उतरकर मेरा नन्हा बचपन
ठाकुर जी से आँख मिचोली
खेली थी
आज में उसी चौखट पर
कितनी अकेली थी
की साइकिल की तरीन तरीन सी
मंदिर में घंटी बजती है
ठिठोली भी करते हो तुम ठाकुर
मुझपे तुम भी हँसते क्यों हो ?
जाओ, ना बोलू तुमसे ॥
पनघट पे सुनती सखियाँ
न तुमको फिर बुहारेंगी
कहती हु तुमसे ... सब कहते हैं
ख़त ना आएगा .... बोलो तुम
पनघट पर सखियाँ हंसती है क्यों
मुझपर
राधा को चिट्ठी आई है
उसका भाई बोला था
अब के बरस कटनी पर
सजन घर जाएगी
गौना होगा और दुल्हन बन जाएगी
द्वार पर सांकल
अब भी टूटी है
खट खट नहीं करेगा
सोती थी दुपहरी को
ना जागी तो मेरी सखियाँ
पनघट पर हंसती मुझपर
तुम बोलो सब सखियों से
हसना मत पनघट पर
पानी भी डब डब हँसता है
रस्सी भी खड़ खड़ करती है
पानी का बर्तन डूब डूब कर
मुझको मुंह चिढाता है
आया था डाकिया
कहती थी सखियाँ
कह कर मुझे रुलाती हैं
ठाकुर मेरी चिट्ठी लेकर आना
तुम ही और
साइकिल की घंटी से
संदेसा देना तुम ही
सांकल तो टूटी है
पर साजन की चिट्ठी की
मिटटी से तुम लिखना
मेरे सिरहाने
अबकी बार साजन आएगा
मुझको ले जाने ....
मुझको ले जाने ....

अब न हँसेगी सखियाँ मुझ पर
मेरा खत आया है
ठाकुर लेकर
भैय्या मुझको भी भेजेगा
बनकर दुल्हन में जाउंगी
अब ठाकुर के घर !!

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