रिसते हुए ज़ख्म, खुरदरी यादें
मुरझा कर धूल हुई राहें
पत्थर काटती हवाओं की सर सर
सूखे झरने की झर झर
अंधेरों में भटकती हुई आवारगी
घुट घुट जीती हुई जिंदगी
स्याह बादल रेत के
खेत में सूखते धान
बिकता हुआ किसान
पत्तों पर तैरते हुए चेहरे
पसीने से सिंचे फसल
तपते अनाज
बेकारी, भुखमरी, ब्याज
बहिन का ब्याह
लूट, फौजदारी का डाह
कराहते कंकाल
बिहार, बंगाल
मध्य, दक्षिण
उत्तर विशाल
जिस्म का सूखता पानी
विचरते हुई लाश
गुमसुम परिंदे
बेलों पर झूलती विधवा
कल्पे हुए बैल
किस्मत का मैल
लाला के ताने
मन न माने
बच्चों की परवरिश
पत्नी का सम्मान
जिम्मेदारी, लाचारी
फांसी पर झूलता किसान !!
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