रह रह कर यही प्रश्न
मेरे मन में उठता है
कौन हूँ में
क्या अस्तित्व है मेरा
क्यों कोई मुझे पहचानता नहीं है
क्या हम सभी में
समानता नहीं है
सब मौन क्यूँ हैं
कौन हूँ मैं !!
क्या में हवा हूँ
तो फिर स्थिर क्यों हूँ
या पत्थर से टकराकर
बेबस हुआ हूँ
में दीखता नहीं हूँ
या अनदेखा किया है
में हवा भी नहीं हूँ
कौन हूँ मैं !!
क्या में जल हूँ
आज था या कल हूँ
वेग प्रबल है
मेरा मन विह्वल है
क्या बर्फ से पिघला
ये खरा आँखों का पानी
जहां से गुजरा
सब बंजर हुए
क्यों चोट तुम्हे पहुंची
क्या खंजर हुए ?
पानी तेरी आँखों में
मेरी आँखों में
में जल भी नहीं हूँ
कौन हूँ मैं !!
क्या में आग हूँ
या अपनी ही राख हूँ
क्या तुझको ये आग जलाती है
या में खुद ही जलता हूँ
सूरज की तरह तपता हूँ
मेरी आग में रौशनी क्यों नहीं
क्यों तेरे लिए में शबनम हुआ
मेरी आग भी मेरी
आँखों का पानी सुखाती नहीं
मैं आग भी नहीं हूँ
कौन हूँ मैं !!
क्या मैं मिटटी हूँ
बंजर या रेतीली
उगी हैं खर पतवार
या फिर झाडें कटीली
बिखरी हैं कण कण में
ये रेत है या मिटटी
तपती हुई रेत पर
सुलगती है मेरी ज़मीं
कहीं पानी ज्यादा है
और सूखा है कहीं
रेत में उगता है
तिनका महीन
मेरी जिंदगी में
तिनका भी नहीं
मिटटी और रेत
कभी एक
होते नहीं
नहीं मैं मिटटी नहीं हूँ
कौन हूँ मैं !!
क्या मैं आकाश हूँ
ऊँचाइयों में अकेला
या नियति का खेला
क्यों उचक कर तूने
ना चाह छूना मुझे
क्यों तुझमे मुझमे है
अब ये दूरी
मैं कहाँ हूँ तेरे बिन
तू मेरे बिन अधूरी
गर आकाश होता
तो आज़ाद होता
यादों में तेरी
मैं तो बंधा हूँ
नहीं मैं आकाश नहीं हूँ
कौन हूँ मैं !!
न मैं हवा हूँ ना आकाश
ना मिटटी ना आग पानी
कोई तो बताओ
क्या मेरी कहानी
पांच तत्वों से बनता है जीवन
इनसे विरक्त मेरा ये मन
न जीवित न मृत
मैं हूँ जड़ चेतन !!

very nice
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