Sunday, March 13, 2011

आह

दुविधा का मायाजाल है
हकीकत में हूँ या
मेरा सिर्फ ख़याल है
शब्दों के रागों पर
बूंदों के मोती
आंसू की धारा
आँखें भिगोती
आँखों ने चुपके से
कुछ तो कहा है
कहता नहीं कोई
ये क्या हो रहा है !!

मेरी बातों में ये जादू
पहले नहीं था
ये क्या नगमा
जो मैंने कहा है
कहता नहीं कोई
ये क्या हो रहा है !!

रात का ख्याल है
सूरज क्यों लाल है
हवा क्यों तेज़
महकते फूलों के सेज
सन्नाटे से ये
क्या गूँज उठ रही है
कहता नहीं कोई
ये क्या हो रहा है !!

ये दस्तक सी क्या हो रही है
इन बिखरे पत्तों ने
किसको पुकारा
इन पत्तों को रौंदकर
कोई तो गुज़रा है
कहता नहीं कोई
ये क्या हो रहा है !!

आँखों को मूंदे हूँ
वो किसका है चेहरा
में राधा हूँ, है वो
कृष्ण मेरा
यमुना के तीरे
तू आता नहीं है

कहता नहीं कोई
ये क्या हो रहा है !!

आशाओं के समंदर में
डूबती हुई लहरें
टूटी हुई नाव के
बिखरे हुए टुकड़ों में
ये हलचल क्यों है
चंद साँसों को थामे
ये कौन बह रहा है
कहता नहीं कोई
ये क्या हो रहा है !!

रेत पर लिखी हुई
आयतें
कोई कहानी
दोहरा रही है
वो सूखा है बादल
हवा ले जा रही है
वो रेतीली ज़मीं मेरे
क़दमों से सरकी
वो हाथों से मेरे
जहां जा रहा है
कहता नहीं कोई
ये क्या हो रहा है !!

वो चिंगारी जो उड़ कर
लकड़ी पर गिरी थी
वो जलता तो है लेकिन
रौशनी कहाँ है
मेरा कौन है
क्यों चिता मुझको
जलाती नहीं है
कहता नहीं कोई
ये क्या हो रहा है !!

वो दिया जाने
क्यों जल रहा है
तूफ़ान को जाने
क्या हो गया है
वो जब बुझा था
तो धुंआ क्यों नहीं है
कहता नहीं कोई
ये क्या हो रहा है !!

वो तारे भी
आँखों से ओझल हुए हैं
वो उड़ते परिंदों ने
उड़ना क्यों छोड़ा
वो पीले पत्तों पे
ओस के मोती
रंगों में क्यों
बिखरे नहीं हैं
कहता नहीं कोई
ये क्या हो रहा है !!

हवा तेज़ थी तो
कदम लडखडाये
साँसों ने भी तो
अब साथ छोड़ा
मेरा के है
जो तुमको
मेरी याद आये
मेरा वजूद भी
घबरा गया है
कहता नहीं कोई
ये क्या हो रहा है !!

में जो गिरा हूँ
क्या तूफ़ान है आया
तेरी आवाज़ क्या
छूकर मुझे गुजरी
ठहरो ! रुक जाओ !
ना नेह्लायो मुझको
गंगा में अमृत बाकी अभी है
कहता नहीं कोई
ये क्या हो रहा है !!

रस्ते से गुज़रा था
जनाज़ा मेरा
अरमानो ने दिया था
कन्धा मुझे
काँटों से अरमान मेरे छिले थे
लहू के बदले आंसू बहा था
सुबह से पहले
था जलना मुझे
फिर क्यों रात बाकी अभी है
कहता नहीं कोई
ये क्या हो रहा है !!

एक पौधा उगा है
जहाँ मेरी चिता जली थी
तेरी आँखों के पानी से
वृक्ष बन रहा है
ये चाय तुम्हे देगा
जब तक जियेगा
मर कर भी रौशन
तुम को करेगा
मेरी चिता में
लकड़ी मेरी नहीं थी
तभी लाश मेरी
अब तलक जल रही है
जलोगी जब तुम तो
ये महसूस होगा
मेरी लाश अब तक
क्यों सांस
लिए जा रही है
कहता नहीं कोई
ये क्या हो रहा है !!

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