Saturday, November 14, 2009

one rainy day

बारिश की आवारा बूँदें
मेरी तन की ज्वाला को
बरबस यूँही हवा नहीं देती
भीगे पत्तों में
पीला पत्ता भी है
जिसकी आह किसी को
सुनाई नहीं देती
बिखरे पत्ते ज़मीन पर
एक दूसरे से यही पूछते हैं
ये बहार मेरी नही
ये बादलों का कर्कश संगीत
मौत का सन्नाटा है
शाखों से टूटे इसलिए
कि रौंदे जाएँ
क्या यही हमारी
नियति है
क्या मेरी मौत इतनी
छोटी है
दो बूंदे भी नसीब नहीं
जिसकी चाहत थी
वो भी अब करीब नहीं
ये दुनिया का दस्तूर सही नहीं
लेकिन ये पीले पत्ते
बड़े जीवट हैं
इनका बिखरना नए
जीवन की आहट है
ये तो यूँही टूटेंगे
नए पत्ते
जीवन का मज़ा लूटेंगे !!

© आलोक, २००९
Chaat Vaat Khaalo!! Creative House

Thursday, November 5, 2009

अनकही

बात करता हूँ मैं ख़ुद से
बात होती है
मुलाकात करता हूँ मैं ख़ुद से
मुलाकात होती है
मेरी फुर्सत मेरी कोशिश मगर
दिन रात होती है
काली स्याह रातों में
सितारों के नजारों की
जब दरकार होती है
बादल की छटा छा जाती है नभ में
और बरसात होती है
ये खुशबु फूल गुलाब की
हर प्रभात होती है
छुडा कर वो मेरा दामन
कांटे भी चुभोती है
पतवार का प्यार कलि से
काँटों को नागवार गुज़रती है
यही दस्तूर है शायद
कलि तो अली के
साथ होती है
बात करता हूँ मैं ख़ुद से
बात होती है !!

© आलोक, २००९
Chaat Vaat Khaalo!! Creative House

Sunday, October 25, 2009

Fainting Star




आगे घनघोर अँधेरा है
सूरज चाँद को खा गया
और सूरज को खा गया अन्धकार
मेरी परछाई भी
अन्धकार में हो गई गुम
मेरी आवाज़ भी है सुन्न
बादल तारे भी
अन्धकार के आगोश में
हाहाकार ! ब्रह्माण्ड है शोक में !!

© आलोक, २००९
Chaat Vaat Khaalo!! Creative House

भूल जा

अब तो अकेले में भी मुस्कुराने लगा हूँ
जाने क्या बात है सब दर्द छुपाने लगा हूँ
चाहता तो ऐसा मैं भी नहीं था
बातों में ज़माने की मगर मैं आने लगा हूँ
कहती है दुनिया तुझे भूल जाऊं
अपनी ही कही बातों को शायद भूल जाने लगा हूँ
उजालों में दिन के, ठोकर ही पायी है
चिरागों को घर के बुझाने लगा हूँ
सुनते थे मोहब्बत में खिल जाती हैं कलियाँ
काटों के ज़ख्म से मुरझाने लगा हूँ

© आलोक, २००९
Chaat Vaat Khaalo!! Creative House

जलती बुझती बात

रात सारी रात देखी
जलती बुझती बात देखी
कहती मुझसे मेरी बातें
पल में कटती लम्बी रातें
आंखों में बहती बात देखी
काजल की बहती धारा
धधकती हुई बहती धारा
सूखी सी बरसात देखी
सूनी सूनी सांझ बोली
तारों की उड़ान बोली
रंगों की मुस्कान बोली
तेरी मेरी बात देखी
जलती बुझती बात देखी

© आलोक, २००९
Chaat Vaat Khaalo!! Creative House

Saturday, October 24, 2009

लेकिन हर शाम दिल कहता है

जाने क्यों घर में विराना paata पाता हूँ
गलियों में भटकता हूँ और
आशियाना चाहता हूँ
होश वालों की भीड़ me में टकराता हूँ
और दीवानगी चाहता हूँ
बहारों में पलकर पतझड़ में
बिखर जाना चाहता हूँ
महफिलों में शायरों की ख़ुद को
अंजाना पाता हूँ
अंधी शाम की टिमटिमाती
लौ में
बुझ कर मिट जाना चाहता हूँ
तन की सीमायें तोड़कर मन के दायरों में
भटकना चाहता हूँ
लेकिन हर शाम दिल कहता है -
घर चलूँ !!

© आलोक, २००९
Chaat Vaat Khaalo!! Creative House

Sunday, October 18, 2009

दीवाली के रंग है

दीपों की होली पर
दिल जलता क्यूँ है?
सीने में भरा लोहा
मोम की तरह
पिघलता क्यूँ है?

आज, रात जागेगी
अंधेरों से भागेगी
ये चाँद सितारों को
खलता क्यूँ है?

बारूदी इत्र जब
मदहोश करती है
नशीली रात को
गुमसुम बैठा भवर
मयखाने का पता
पूछता क्यूँ है?

सन्नाटे चिल्ला कर
ख़ुद से बात करते हैं
विरानो में आहट
गूंजता क्यूँ है?

मेरे दिन रैन जलते हैं
निराशा के झींगुर
पलते हैं
अंधी आँखे
ढूंढता क्यूँ है?

बिना तेल दीपक
बिना लौ भी
जलता है
रौशनी तो नही
अंधेरों में फ़िर भी
दिखता है
सूरज तू
ढलता क्यूँ है?

ऊंचाइयों के आयाम
छूकर
ओंधे मुहँ गिरता है
गिरने के लिए
फ़िर
संभालता क्यूँ है?

वक्त के चक्रवात से
फूटेंगी ग़म की
धाराएँ
बादल सूखे
आंखों में
बरसात क्यूँ है?

हँसता है कोई
रिश्तों के जनाजे पर
खुश था कोई
मुझे दफन करके
लाश पर मेरी
मातम क्यूँ है?

© आलोक, २००९
Chaat Vaat Khaalo!! Creative House

Monday, September 7, 2009

Telescope

एक पाइप से
ज़िन्दगी झांकती है
यह पाइप नहीं
Telescope है

टिमटिम आँखें हैं इनमे
दो जिस्म अंगडाई
लेते हैं
एक पर्दा है
जाली वाला
उसके पीछे एक
बुलबुल है
वो गाती है
तो दूर तलक
आवाज़ की महक
सुनाई देती है
यह पाइप नहीं
Telescope है

जब आँखें शोर करती हैं
तब भोर भी
शोले बरसाती है
दो पंछी पंख
फैलाते हैं
उड़कर दूर जाने को
और धम्म से
नीचे गिर जाते हैं
यह पाइप नहीं
Telescope है

उसको क्या दिखता है
उसको क्या दिखना था
ये उसकी समझ
से पार है
वो तो बस चलने को
तैयार है
ये घुटन उसे
तडपाती है
पल पल उसे
डराती है
यह पाइप नहीं
Telescope है

उड़ने की कोशिश
में पंख उसके
टूट जाते हैं
जिंदगी को जिंदगी
से पहले जीने की
चाहत में
प्राण उसके
बिखर जाते हैं
यह पाइप नहीं
Telescope है

© आलोक, २००९
Chaat Vaat Khaalo!! Creative House

Saturday, July 18, 2009

वार्तालाप

इक्कीसवी सदी ने पुछा हमसे
क्यों? कहाँ हो? क्या देखते हो?
मेरे साथ आओ सुनहले सपने देखो
समृद्धि उन्नति और ज्ञान देखो
हमने कहा - हम ''बीस'' में ही भले
इसी में बढे इसी में पले
हम वर्तमान में जीते हैं
रोटी खाकर जल पीते हैं
सुनहले सपने रहने दो
इन आंखों को बंद रहने दो !


चल मेरे साथ अब मत सोच
तुझे सम्पन्नता के दर्शन कराएँ
अधिक पाने की सोच जगाएं
संतोष ही परमसुख है
इसके आगे दुःख ही दुःख है
अब मुझे कहने दो
सिक्कों को चन्द रहने दो !


अरे ! पृथ्वी का है खेल सारा
ये है सभा प्यारा
नई धरती खोजना है
हमारी यह पहली योजना है
इस धरती के लिए युद्ध हुए
मनुष्य ने मनुष्य को मारा है
अधिक धरती होगी तो अधिक युद्ध होंगे
करोड़ों नर बलि होंगे
भूमि को बोझ सहने दो
मिटटी का खंड रहने दो !


चल उस दिशा में चले
जहाँ पुष्प ही पुष्प मिले
जहाँ बालू से आए सुगंध
जहाँ पवन चले मंद मंद
सूरज भी किरणों से नहलाये
नदियाँ भी चंचल संगीत सुनाएँ
नहीं नहीं ! क्षमा करें !
हमने देखा है बालू को सुखाते हुए
पवन को बहाते हुए
सूरज को जलाते हुए
नदी को दहाते हुए
पुष्प तो मुरझा जाते हैं
पीछे दुर्गन्ध छोड़ जाते हैं
विज्ञानं का घमंड रहने दो
विचारों को "कबंध" रहने दो !!

© आलोक, २००९
Chaat Vaat Khaalo!! Creative House

स्वर्गारोही

हे देवेन्द्र! कोटि प्रणाम
कृपा कर कृपानिदान
भिक्षु हूँ, मुझको दे वर्षादान
जहाँ खुशहाली के जंगल थे
आज वहां बदहाली के रेगिस्तान हैं
जहाँ सुख सम्पदा के मंदिर शिवालय थे
आज वहां दुःख के शमशान हैं
जलमग्न धरती पर जल का आभाव है
छाती फटी है धरा की
तेरा दिया ये घाव है
मेघ! तू कर गर्जना
शांत कर धरती की वेदना
क्यूँ नहीं सुनता धरती का रोदन
मेरा इतना सा अनुमोदन
मेघराज! भेज कर अपने जलदूतों को
तृप्त कर दे सूखी धरती को
देवराज! इतना अभिमान
जिस आसन का है तुझे मान
छीन लूँगा में वो आसन
अंत होगा तेरा शाशन
मैंने किया है ये अनुष्ठान
स्वर्गराज! संभल संभल
मैं स्वर्गारोही
सावधान! सावधान!

© आलोक, २००९
Chaat Vaat Khaalo!! Creative House

Sunday, July 12, 2009

तेरे इश्क में

रात सी तन्हा
भोर्रों के अरमां
झील की आँखें
प्यास की प्याली
ओस की चादर
मैला बादल
बहता काजल
हँसता पायल
कांच का सेहरा
चुभते कंकर
वक्त का साथी
मील का पत्थर
दर्द का झुरमुट
याद का मलहम
बोलती बातें
कांपती कसमे
ओझल मंजिल
तपती राहें
साँझ का सांझी
'केस' ओ 'राँझा'
तेरे इश्क में !!

© आलोक, २००९
Chaat Vaat Khaalo!! Creative House

Wednesday, July 1, 2009

मुजरिम

अब की बार जब लौटा तो
सब कुछ बदला बदला था
सावन में आकाश सुर्ख था
और खेत बंजर थे
चौपाल पर गिरते जलस्तर
की बहस छिडी थी
तो कोई क़र्ज़ माफ़ी
पर अड़ा था
वो देखो ! 'सत्यकाम' आ रहा है
चौपाल आने वाले बजट को ताल
गालियों का बाज़ार गर्म करने लगा
व 'नागो' का बेटा !
वही नागिंदर
वह चोरी की सज़ा काट कर आया है
नही नही ! वह तो नक्सली हो गया है
वह अब क्या लेने आया है ?
उस बूढे को क्या खूब दिन दिखलाये हैं !
मिश्रा जी की चौखट से गुजरा
तो ठिठका 'डौली' की उन यादों पर
बीच मंडप से भागा था
रिश्तों से बगावत कर
समाज बौखला उठा था
इस खिलाफत पर
छोटे भाई ने थामा था
हाथ 'डौली' का उस दिन
उस दिन से बन गया
सत्यकाम
समाज का मुजरिम !!!!

© आलोक, २००९
Chaat Vaat Khaalo!! Creative House

Friday, April 10, 2009

बूँद पड़ी !!


कड़ी धुप, निकल भूप
रेशमी कुरता, पहन कोल्हापुरी
लगा तेल चमेली
चबा पान बनारसी
चले बाबू भूप
बाज़ार बरेली !
रोका! बैठे! टमटम चली
जून दुपहरी
बूँद पड़ी !!
घंटा भर सफर , पहुंचे
भूप बाज़ार बरेली
रोका टमटम और उतर
सामने दूकान नवेली
अंधार पधारे
बोले कूलर दिखावें
शीतल करे जल्दी
देह आत्मा और हवेली
दुकान में सुंदर नार
कर रही प्रचार
पसंद कीजिये सरकार
बाबू भूप नज़र महीन
बड़े शौकीन
कूलर रंगीन
रुपये पाँच सौ मोल ली
बंधवाकर बोले ए कुली
चल उठा मेरी प्यारी
लाड टमटम पर
देकर ध्यान
अनमोल सामान
चलो कोचवान
चलो हवेली
बीच अधर
छाई बदली
तेज़ आंधी
बूँद पड़ी !!
अरे ये क्या?
आए मानसून
अरे अन्हीं
अभी जून
पहुंचे भूप तरबतर
टमटम रुका और उतर
सामान भीतर कर
ख़ास कोठी में लगाया
भूप पलंग पर सुस्ताया
शीतल हवा चली
बूँद पड़ी !!
हाई री किस्मत
बाबू भूप कूलर और हवेली
मैं देहली
बूँद पड़ी !!

© आलोक, २००९
Chaat Vaat Khaalo॥!! Creative House

Sunday, April 5, 2009

कवि और डकैत


सुबह सवेरे सैर को निकला !
शीतल हवा की चाहत में
उद्यानों में घूमता
फलों फूलों को निहारता
पौधों को बाहों में भरता
आगे थे गन्ने के खेत !!
गन्ने की तरफ़ मैं क्या बढ़ता !
मानव आकृति देख मैं हुआ सचेत
अजान बाहू तेजस्वी मस्तक विशाल शरीर
डरते डरते पुछा मैंने कौन हो तुम सज्जन
कर्कश स्वर में उत्तर आया मैं हूँ डकैत !!
कनक आभूषण का मैं लुटेरा !
लूटता हूँ लोगों का चैन
मनुष्यों में मैं भय बांटता
हुक्म मानते है सब मेरा
अब ये बता कौन है तू क्या काम है तेरा !!
मैं भी हूँ एक डकैत !
लूटना मेरा बी काम है
लोगों का मैं भय लूटता
अज्ञानता को मैं मिटाता
सूर्य से प्रकाश चुराकर
अन्धकार को मैं हराता
जन-जागरण और क्रान्ति
का हूँ मैं जन्मदाता
तेरी क्या है बिसात
मैं हूँ तुझसे बड़ा डकैत !!
डाकू धरती पर गिर कर बोला !
ओ बड़े डकैत
डाकू तो अंधे होते हैं
हाथ उनके बंधे होते हैं
तुम तो हो आज़ाद पंछी
डाकू तो नष्ट करते हैं
तुम तो निर्माण करते हो
यूँ न बदलो मेरी जात
तुम नही डकैत तुम नही डकैत !!
मैं रक्त से लिखता हूँ !
कलम मेरी बन्दूक है
तुम स्याह से लिखते हो
तेरी कलम ही बन्दूक है
जो न कर पाये हमारी गोली
वह कर दिखाए तेरी बोली
यूँ न बदलो मेरी छवि
तुम कवि तुम कवि !!

© आलोक, २००९
Chaat Vaat Khaalo..!! Creative House

Saturday, March 14, 2009

मुझे वोट दीजिये

मुझे वोट दीजिये
मेरा चुनाव चिह्न है गधा
मेरी मानिए मैं आपको गधा नहीं बनाऊंगा
मैं ख़ुद ही गधा हूँ (कृपया गधे मुझे माफ़ करें)
आपको क्या बनाऊंगा
गधा बहुत ही काम का होता है
ज़माने भर का बोझ ढोता है
हर दुःख दर्द सहता है
बस यही कहता है
मुझे वोट दीजिये !!
इस देश को गधा ही चाहिए
कितना भी वजन डालो
ना झुकता है ना गिरता है
ये भले ही रुक रुक के चलता है
मगर मंजिल पर ज़रूर पहुँचता है
इस लिए यही कहता है
मुझे वोट दीजिये !!

ये सीधा सरल और सच्चा है
पर ये न समझना की कच्चा है
इरादे का बड़ा ही पक्का है
काम के वक्त ये घास नहीं खाता है
खाते वक्त ये काम नही आता है
फिर भी यही कहता है
मुझे वोट दीजिये !!

देश की यही आवाज़ है
वाह ! क्या सुर है क्या साज़ है
आवाज़ में इसके एक राज है
हम अनेक हैं किंतु हमारी आवाज़ एक है
शांत रहता है
सिर्फ़ यही कहता है
मुझे वोट दीजिये !!

पड़ोसियों !!!
मत समझना ये शांत जाति है
केवल घास नहीं खाती है
अरे ! छेड़ कर तो देखो
ये क्या रंग दिखाती है
ऐसी दुलत्ती मारती है
के नानी याद आती है
बहुत कुछ कर सकती है
लेकिन यही कहती है
मुझे वोट दीजिये !!!!!

© आलोक, २००९ Chaat Vaat Khaalo॥!! Creative House


युवाबल !!



ऐ युवाबल !
कदम कदम बढ़ा
संभल संभल
आज तुम्हारा है
तुम्हारा होगा कल
राह अलग अलग
एक हो मंजिल
एकजुट एक दल
बढ़ता चल
राहें काटों से पटी
बिना रथ पैदल
बिना थके बिना रुके
जैसे चट्टान अविरल
बढ़ता चल
तुम आस की किरण
सूर्य अटल
निश्चय कर
होंगे सफल
ऐ युवाबल !!

© आलोक, २००९
Chaat Vaat Khaalo..!! Creative House

Thursday, March 12, 2009

सोचता हूँ एक कविता लिखूं

कुछ करते करते में रुक गया
सोचता हूँ एक कविता लिखूं !

क्या लिखूं ये सूझता नहीं है, फ़िर भी
सोचता हूँ एक कविता लिखूं !

जानता हूँ हँसते हैं लोग मुझपर
मेरे इस दकियानूसी शौक़ पर, फ़िर भी
सोचता हूँ एक कविता लिखूं !

किसी के विचार, शब्दों की पोटली में
अच्छे नहीं लगते हैं, फ़िर भी
सोचता हूँ एक कविता लिखूं !

में जानता हूँ प्रिये! मेरे शौक़ से तुम भी
उलझनों में रहती हो, फ़िर भी
सोचता हूँ एक कविता लिखूं !

में पुराना हूँ, तुम समय के सारथी
में अपनी बातें ही दोहराता हूँ, फ़िर भी
सोचता हूँ एक कविता लिखूं !!

© आलोक, २००९
Chaat Vaat Khaalo..!! Creative House

Tuesday, March 10, 2009

इन पन्नों को पलट दो

वो किताब देख रहा हूँ
उनमे कुछ शब्द
नहीं दीख पड़ते हैं
कोई इन पन्नों को
पलट दो

मिटा क्यों नहीं देते हो
ये तहरीरें ये लकीरें
ये तस्वीरें
जो तकलीफ देती हैं

कशमकश
जो जीने नहीं देती
ख्वाहिशें
जो मरने नहीं देती

ये तस्वीरें
जो तकलीफ देती हैं
मिटा क्यों नही देते हो

ये तन्हाइयाँ
ये घुटन
ये कुंठित से
सुखन
कोई इन पन्नों को
पलट दो !!!!

© आलोक, २००९
Chaat Vaat Khaalo..!! Creative House

Sunday, March 8, 2009

दो राहें



जब भी मैं निकलता हूँ
कर के पूरी तैय्यारी
अपनी मंजिल की और अग्रसर
दो कदम चल कर
मुझे क्यों मिलती हैं सामने दो राहें
मुझ पर फैलाती अपनी बाहें !!
त्याग ओर विलास
दो अंतहीन राहें

एक कांटो का पथ है
दूसरा पतन का रथ है
भरमाये काँटों का दर्शन
खींचे रथ का आकर्षण
त्याग पथ पर क्यों जाऊं मैं
क्या पाया है ज़िन्दगी से मैंने
जो सब कुछ व्यर्थ लुटाऊ मैं
विलास पथ पर जा कर
क्यों न जीवन सुंदर बनाऊं मैं
पथ पर मिले साधू महान
मैंने किया अपनी व्यथा का बखान
साधू ने मुझको समझाया
करना है जीवन सफल
तो काँटों के पथ पर चल
पुष्प से पहले है काँटों का स्थान !!
पर मैं तो चाहूँ पुष्प काटों से पहले
काटों के पथ पर जाऊं न जाऊं
ख़ुद को फ़िर से दोराहे पर पाऊं
मुझे क्यों मिलती है सामने दो राहें
मुझ पर फैलाती अपनी बाहें !!!!

© आलोक, २००९
Chaat Vaat Khaalo..!! Creative House

Wednesday, March 4, 2009

तुम ही पुकारो

अकेला हूँ !
दो बोल सुनने को तरसता हूँ
दीवारों ! तुम ही पुकारो !!

पराजित हूँ !
जीतने को तड़पता हूँ
सफलता ! तुम ही पुकारो !!

विकृत हूँ !
नव - सरचना मांगता हूँ
प्रकृति ! तुम ही पुकारो !!

भटकता हूँ !
आश्रय चाहता हूँ
भूमि ! तुम ही पुकारो !!

रोता हूँ !
मुस्कुराने को इच्छित हूँ
सुखराम ! तुम ही पुकारो !!

सुप्त हूँ !
जागना चाहता हूँ
अन्तर मन ! तुम ही पुकारो !!

मृत हूँ !
जीवन चाहता हूँ
अमृत ! तुम ही पुकारो !!

तिरस्कृत हूँ !
शरणागत हूँ
राम ! तुम ही पुकारो !!


© आलोक, २००९
Chaat Vaat Khaalo..!! Creative House

Saturday, February 28, 2009

मैं फ़िर ब्रह्मचारी

काश कोई अपने लिए भी
करवा चौथ का व्रत रखता
रात को चाँद देख कर ही
अन्न जल ग्रहण करता
जब चाँद के साथ देखे जाते
तब हमें भी देवता होने का एहसास होता
हाई री किस्मत !
रोज़ मन्दिर जाके घंटे बजता हूँ
नारियल की रिश्वत देके
मन्नत मनाता हूँ
की हमारे लिए भी "शुशील" कन्या
प्रकट करो भगवन
जिसे देख कर खिल उठे
मेरा ये तन मन
अपनी demand है की
लड़की कुछ ऐसी हो
हो भारत की पर दिखने में
पश्चिम की परियों जैसी हो
आँखें हो जैसे A.K. छप्पन
देखे जिस तरफ़
लाशें गिरा दे दनादन
होठों में हो ऐसा शबाब
के पड़ जाए फीका
जन्नत - ऐ - आब
विष बुझे तीरों सी हो उसकी बोली
फूल भी मारे तो लग जाए गोली
घुंगराले बाल हो करिश्माई इस कदर
के फीका पड़े सन्नी भाई का
पाकिस्तानी "ग़दर"
चाल की क्या बात हो
मंजिल ख़ुद भूल जाए अपनी डगर
कर रहे थे हम अपनी इस Fantasy पर गुमान
तभी राह में दिखलाई दिए प्रभु हनुमान !
हमने किया दंडवत प्रणाम
खुश होकर प्रभु बोले
पुत्र ! मांग लो वरदान !
बस फिर क्या था
हमने अपनी Dream कुड़ी का किया बखान
सुनते ही प्रभु के पसीने छूट पड़े
बोले अपनी Problem भी तो यही है
ढूँढता हूँ जिस Dream कुड़ी को
मिलती कहीं नही है
इसी सिलसिले में थी
इन्द्र से Appointment
उन्होंने खोला है Match-making का Department
अरे तुम भी जल्दी से
अपनी अर्जी भेज दो
waiting list लम्बी है
lucky draw से number आयेगा
एक original बाकि फर्जी भेज दो
हमने suggest किया हनुमान को
इस से पहले के हम
अपनी अर्जी send करें
आप तो राम के करीबी हैं
तो फ़िर क्यों न वे हम दोनों का
नाम recommend करें
तो वो कहते हैं पैरवी तो न चलेगी
अव्वल तो इन्द्र के हिदायत हैं कड़े
वो क्या recommend करे
जो line में पहले से हो खड़े
जबसे सीता मैय्या गई हैं
उनकी तो हालत
अपनी से भी है बुरे
यह सब सुन कर हमे विविध भरती का
भूला - बिसरा गीत याद आया -
दुनिया में कितना ग़म है
मेरा ग़म कितना कम है
जब राम और हनुमान की नही सुनता
तो मेरे नारियल में क्या दम है
हमने भी मन ठाना है कि
राम और हनुमान का काम करवा के रहेंगे
हमे तलाश है जिनकी
वैसी शुशील कुड़ी
पा के रहेंगे !!!
हमने WORLD FORCED कुंवारा
Association का गठन करवाया
और Agenda का पहला item
लड़की रखवाया
और फ़िर दल - बल सहित
ब्रह्म लोक पर मोर्चा लगाया
ब्रम्हा जी के साथ 1st Round Table Confrence
हुई शुरू
पर वो हम सब के निकले गुरु
बड़े जोश से ख़ुद सृष्टि रचते रह गए
अपने लिए न एक रची
अब बूढे हो गए
अरे ये क्या ! अपनी समस्या तो
जस की तस् रही
जो पहले marital status थी
है अब भी वही
ब्रम्हा जी ने हमें ढानढस दिलाया
कुछ सोचा
फिर एक शातिर दाव लगाया
हम सब मिल कर बम भोले के पास चलेंगे
वे सबकी सुनते हैं
वे ही हमारे कष्ट हरेंगे
मोदी की तरह हमने भी रथ यात्रा निकाली
दुनिया भर के अनचाहे कुंवारों की दुआ ली
मन ही मन हमने सोचा
चलो काम न बना तो
नेता ही बन जायेंगे
पत्नी भले ही न मिले
ये कम है क्या
कभी न कभी
राष्ट्र के पति तो कहलायेंगे
कैलाश पर Shiv Secretary नंदी ने रोका
और आने का कारन पूछा
हमने कहा relax! dont get so carried!!
first of all tell me are you married??
शिव पारवती के संग आबाद हुए
उनकी सेवा में नंदी तुम्हारे
न जाने कितने बरस बरबाद हुए
आओ शिवगन join करो हमारी टोली
और Forced कुंवारों की जय हो
लगाओ बोली
ऐसा एक लगा नारा तो
कैलाश पर भूकंप हुआ
अरे नंदी वाला दाव तो साबित
अपने लिए Trump हुआ
शिव पारवती अचंभित हुए और पुछा
ये क्या हल्ला बोल है
इन बागियों में नंदी तुम्हारा क्या Role है
नंदी बोले दर्शानाभिलाशियों की समस्या
बड़ी गंभीर है
समाधान हेतु Line में हनुमान, ब्रम्हा
कविराज, संग में रघुबीर हैं
The are Forced Bachelors
यह Universal Fact है
शिवगन भी संग हैं चूँकि हमारा इन से
bilateral pact है
अब जल्दी कीजिये समस्या पर विचार
वरना टूट जायेगी भक्त - भगवान
के बीच की दीवार
शिव जी घबरा के बोले
ये मेरे बस की बात नहीं
मुझपे न आघात करो
सब किया धरा है विष्णु का
उनसे ही दो दो हाथ करो
चलो में भी तुम्हारे साथ चलूँगा
मुझसे जो भी बन पड़ेगा वो करूँगा
दल बल ने किया
क्षीर सागर कि ओर प्रस्थान
हो न हो अबके होगा
अपनी समस्या का समाधान
ये सोच कर मन हो रहा था बाग़ बाग़
के प्रभुधाम कि पहरेदारी में
मिले शेषनाग
हम बोले कि शिव जी का सन्देश है
प्रभु ज़रा जल्दी करना
मिलने का कारण
विशेष है
प्रभु ने सन्देश पर तुंरत किया विचार
और श्रीघ्र ही खुल गए
बैकुंठ के द्वार
प्रभु ने जब आने का प्रयोजन जाना
स्तिथि बड़ी विकट है, ये भी माना
लक्ष्मी जी ने पूछा हमसे
कहो कवि तुम्हारी पसंद कैसी है
सूझा न कुछ तो कह डाला
ज्यादा कुछ नहीं
बस आप ही के जैसी है
इस पर तो विष्णु हमसे रुष्ट हुए
समझा था तुमको कवि
पर तुम तो सबसे दुष्ट हुए
जा तुझको मैं श्राप देता हूँ
विवाह योग ही तेरा मैं छीन लेता हूँ
कुंवारा ही जीवन भर घूमता फिरेगा
बहुत नेतागिरी करता है
सबके दंड तू ही भरेगा
वीर हनुमान, राम और ब्रम्हा
के प्राण तो मानो सटक गए
इस मानव कि बातों में आकर प्रभु
हम तो अपने लक्ष्य से भटक गए
सब के सब तो हमारा दामन झटक गए
गिरे थे आसमान से
अब खजूर में लटक गए
लटके लटके हमने
खजूर का भोग लगाया
जब होश में आये तो
खुद को बिस्तर पर पाया
मैं फिर भटक गया था
मेरी मति गयी थी मारी
अंगूर अक्सर खट्टे होते हैं
मुझे कुछ नहीं चाहिए
मैं फिर से ब्रह्मचारी !!!!
मैं फिर से ब्रह्मचारी !!!!

© आलोक, २००९

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DESPERATION

दरिया मे दाने मोती के
परियों को पाने के
मेरे इरादे
सूखे शज़र पर
हरियाये पत्ते
झरने से झरझर
घटता पानी
मेरी जवानी की
घटती हुई यादें
अधूरे सपनो के
खोये हुए साये
मेरे तन से आगे
मेरी परछाई
हम सफर करते हैं
माफ़ करना
पूरे न हो सके हमसे
जो किए थे वादे !!!

© आलोक, २००९
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Friday, February 27, 2009

मैं "ऐक" हूँ

संसार ऐक मेला है
कहीं फूल कहीं ढेला है
कहीं नाच गाने
कहीं कठपुतली का खेला है
सभी "उसके" खेल - खिल्लोने हैं
खिल्लोने अनेक हैं
मैं "ऐक" हूँ !

मेले में भीड़ है
कोई राम है कोई कबीर है
जात - पात की खिंची लकीर है
कहीं भव्य महल
कहीं कुटीर हैं
वर्ग अनेक हैं
मैं "ऐक" हूँ !!

यहाँ इस भीड़ में
युवा हैं वृद्ध हैं
दीन हैं समृद्ध हैं
सबका लक्ष्य निश्चित है
पाने को क्यों
चिंतित है
सबका रथ तो ऐक है
पहिये अनेक हैं
मैं "ऐक" हूँ !!!

लोग यहाँ धर्मांध हैं
अगल - बगल शोक और आनंद हैं
आँख खुली है
किंतु बंद है
विद्या व ज्ञानका फैलाव है
फिर भी मति मंद है
धर्माधिकारी का साम्राज्य है
धर्मों द्वारा बँटा ये समाज है
भगवन अनेक हैं
में "ऐक" हूँ !!!!




© आलोक, २००९


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Saturday, February 21, 2009

धुआँ

धुऐं की तरह
भटकता रहा मैं
कुछ दूर जाकर ओझल हुआ
क्या मंज़िल मिल गयी मुझे
या कारवां गुज़र गया !

ये कैसा सफ़र था
ये कैसी थी यादें
कदमों के निशान ना थे
सिसकियों के कान्टे थे
और मुरझाई हुई थी यादें
कण्ठ से निकल कर
हवा हो गई
मेरी चीख भी शायद
धुआँ हो गई !!

तमन्नाओं के अंधेरे
दिन में मोम हो जाते हैं
अंधेरों का साया पड़ते ही
अरमान जाग जाते हैं
फ़िर रात जल कर
सुबह जवान हो गई
मोम पिघलकर राख
और रोशनी धुआँ हो गयी !!!






© आलोक, २००९


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द्वारपाल द्वार खोलो



विमूढ् हो, त्यज कर
'आलोक' रथ पर पसर
मृत्युलोक मुझे झमा कर
मैं चला इन्द्र के घर

मित्र आये, सहभागी आये
पहुंचे दर्शनाभिलाशी अपार
देकर बिदायी, कर अन्तिम प्रणाम
सब कर गये प्रस्थान
मैं भी चल पड़ा उस धाम
अंतहीन राह, पहुँचा मगर

द्वारपाल द्वार खोलो !

अरे ! क्या तू बधिर
हुआ मैं अधीर
हे वीर हे सुधीर
सुन मेरी पीर
में मानव हूँ
पृथ्वी वासी हूँ

संदेश भिजवाया
ऐरावत आया
मैंने किया नमन
ऐरावत बोला हे सज्जन
क्यों आया है,
तेरा क्या है प्रयोजन

कुछ खीज खीज कर
दांतों को पीस कर
मैंने कहा
हे इन्द्र
द्वार तुम्हारा बंद है
तिस ज्ञान भी मंद है

धरा पर अशांति अधर्म का राज है
क्षुब्ध पीड़ित शोषित धरा आज है
दुःख अशांति विनाश को मैं त्याग
हो कर बैराग
बड़ी अभिलाषा ले कर
मैं आया तेरे घर
अतिथि देवो भव
तू कर मेरा सत्कार

मेघ गरजा और गुर्राया
हाए रे मानव
क्या तेरा अधिकार ?
तुझ पे है धिक्कार !

तू ने ना दुखों को झेला है
ना ही मुसीबतों से खेला है
जिस दिन तू करेगा सागर पार
तिस दिन रश्मिरथ पर होना सवार
तब खुलेगा येह किवाड

हे बैरागी, मैं दूँगा तुम्हे आसन
पहले दो ये वचन
तू कर दे अब प्रस्थान
बन समय से बलवान
मृत्यु मै तु जीवन् को खोजता है
ये महामूर्ख्ता है !!
ग्रहन कर देवज्ञान
मैने किया धरा पर प्रस्थान

द्वारपाल द्वार खोलो !!!!



© आलोक, २००९
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Saturday, February 14, 2009

जो मैंने नहीं लिखे



मेरे दिल के मकान के
खाली दराजों मैं अब भी
तुम्हें वो ख़त मिल जायेंगे
जो मैंने नहीं लिखे !!



मेरी आंखों की गेहरायिओं में उतरोगी
तो तुम्हें दिखाई देंगे
बहुत से शब्द डूबते हुए
जो मैंने नहीं लिखे !!



कभी शामिल हो जाओ मेरी ज़िन्दगी में
तो पढ़ सकोगी
कई ना-उम्मीद कहानियाँ
जो मैंने नहीं लिखे !!



कभी जब मेरा हाथ थामोगी तुम
तो महसूस करना
अधूरी सी लकीरें
जो मैंने नहीं लिखे !!



कभी अपने दिल में तुम
जब झांकोगी तो तुम्हें दिखेंगी
जलती हूई किताबें
जो मैंने नहीं लिखे !!



मेरे ये नज़्म तुम्हारे लिए ही हैं
तुम देदो इन में
कोई ऐसा मोड़
जो मैंने नहीं लिखे !!




© आलोक, २००९
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मैं हार मान लेता हूँ !!

मैं हार मान लेता हूँ
जब सूरज अस्त हो जाता है
फूल सभी मुरझा जाते हैं
जब समय चलने लगता है
और मैं ठहर सा जाता हूँ

मैं हार मान लेता हूँ
जब आशा की चिकनाई पर
पाँव फिसलने लगता है
सब आगे बढ़ जाते हैं
और मैं पीछे रह जाता हूँ

मैं हार मान लेता हूँ
जब ठोकर राह में लग जाए
कोई हाथ मुझे न थामे
गिरता हूँ आप संभालता हूँ
और थक कर बैठ जाता हूँ

मैं हार मान लेता हूँ
जब मेरी हार पर हसने वाले
रोज़ मुझे गिराते हैं
मैं कुछ कह नहीं पाता हूँ
और सब कुछ सहता जाता हूँ

मैं हार मान लेता हूँ !!!
मैं हार मान लेता हूँ !!!


© आलोक, २००९

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यह कवि निराश है


सुनो ! बात एक मैं कहता हूँ
बात है बहुत ज़रूरी
यह कवि निराश है
अब तुम करो मेरी कविता पूरी !!!


ठहरो ! शब्द तुम
न मुझसे रूठो
समझो कुछ
मेरी मजबूरी
यह कवि निराश है
अब तुम करो मेरी कविता पूरी !!!


पंथी ! प्यासे तुम
मत जाओ
पनघट की है
थोडी दूरी
यह कवि निराश है
अब तुम करो मेरी कविता पूरी !!!


जागो ! पलकों पर जलते
सपने दिन के
रात आती
घटता है सूरज
ख़त्म होगी नूरी
यह कवि निराश है
अब तुम करो मेरी कविता पूरी !!!


देखो ! खुली किताब का
पलटा हुआ पन्ना
और धुंधली स्याही
अन्तिम पन्ना है कस्तूरी
यह कवि निराश है
अब तुम करो मेरी कविता पूरी !!!


© आलोक, २००९

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